6. दो बैलों की कथा
कवि परिचय
प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 में बनारस के पास लमही गाँव में हुआ था। उनकी मृत्यु सन् 1936 में हुई। उनका असली नाम धनपत राय था। प्रेमचंद का बचपन अभावों में बीता . और शिक्षा बी.ए. तक ही हो या। उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए अपनी सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। वे पहले उर्दू में लिखते थे। बाद में हिंदी में लिखना प्रारंभ किया। उन्होंने लगभग साढ़े तीन सौ कहानियाँ तथा ग्यारह उपन्यास लिखे। कहानी- प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित है। • उपन्यास सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि। पत्रिका संपादन हंस, जागरण, माधुरी • किसानों और मज़दूरों की दयनीय स्थिति, दलितों का शोषण, समाज में स्त्री की दुर्दशा और स्वाधीनता आंदोलन आदि उनकी रचनाओं के मूल विषय हैं । उनकी भाषा सरल, सजीव व मुहावरेदार है उसमें अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग अत्यंत कुशलतापूर्वक हुआ है।
प्रश्न
1. पालतू एवं स्वतंत्र जानवरों में कौन अधिक सुरक्षित हैं? क्यों?
ज. पालतू और स्वतंत्र जानवरों में पालतू ही अधिक सुरक्षित हैं। लेकिन उनके रहने-खाने, उपचार आदि की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। उनको यदि पालना भी है तो स्वतंत्र वातावरण में पालना चाहिए। आजकल पशु-पक्षियों के रहने के लिए स्थान नहीं रह गये हैं। वन कट रहे हैं। पेड़-पौधे भी कम हो गये हैं। जैव विविधता को खतरा उत्पन्न हो गया है। कई जीव-जंतु लुप्त हो गये हैं कई लुप्त हो रहे हैं। सरकार उनकी सुरक्षा के लिए प्रबंध तो कर रही है लेकिन वह काफ़ी नहीं है। लेकिन किसी पक्षी को पकड़कर कैद में रख देना भी पालना नहीं कहलायेगा। जीव-जंतुओं को उनके स्वाभाविक वातावरण
मुहैया कराते हुए रखा जाना चाहिए।
2. हीरा और मोती की दोस्ती प्रकट करनेवाली पंक्तियाँ पाठ में रेखांकित कीजिए।
ज. पहली घटना
दोनों एक दूसरे को चाटकर और सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे- विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हल्की सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला-हिलाकर चलते, उस वक्त हर एक की यही चेष्टा होती थी कि ज्यादा से-ज्यादा बोझ मेरी ही गरदन पर रहे।
दूसरी घटना -
सामने मटर का खेत था ही। मोती उसमें घुस गया। हीरा मना करता रहा, पर उसने एक न सुनी। अभी दो ही चार ग्रास खाए थे कि दो आदमी लाठियाँ लिए दौड़ पड़े और दोनों मित्रों को घेर लिया। हीरा तो मेड़ पर था, निकल गया। मोती सींचे हुए खेत में था उसके खुद कीचड़ में धँसने लगे। न भाग सका। पकड़ लिया गया। हीरे ने देखा, संगी संकट में है, तो लौट पड़ा। फँसेंगे तो दोनों फँसेंगे। रखवालों ने उसे भी पकड़ लिया।
तीसरी घटना -
आधी रात से ऊपर जा चुकी श्री। दोनों गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे कि भागे या न भागे और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था जब वह हार गया, तो हीरा ने कहा तुम जाओ, मुझे यही पड़ा रहने दो। शायद कहीं भेंट हो जाए। मोती ने आँखों में आंसू लाकर कहा तुम मुझे इतना रवार्थी रामझते हो, हीरा ? हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं आज तुम विपत्ति में पड़ गए, तो में तुम्हें छोड़कर अलग हो जाऊँ।
3. हीरा, मोती की अपेक्षा अधिक मानवतावादी था। उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
ज. हीरा के मोती की अपेक्षा अधिक मानवतावादी होने के निम्न प्रमाण हैं
दो-चार मोती ने गाड़ी को सड़क की खाई में गिराना चाहा, पर हीरा ने संभाल लिया ज्यादा सहनशील था।
मोती, गया को मारने के लिए तैयार हो जाता है। हीरा उसे समझाते हुए कहता है- 'नहीं हमारी जाति का यह धर्म नहीं है।'
मोती मालकिन को मारने का मन कहता है। तब हीरा कहता है- 'लेकिन औरत जात पर सींग चलाना गाना है, यह भूले जाते हो।'
मोती जब भागने के लिए कहता है तो हीरा ने कहा - चलें तो लेकिन कल इस अनाथ पर आफ़त आएगी। सब इसी पर संदेह करेंगे।
सांड से लड़ाई के बाद हीरा मोती को समझाते हुए कहा - गिरे हुए बैरी पर सीग न चलाना चाहिए।
हीरा कांजीहौस में कहता है- 'कुछ परवाह नहीं। यों भी तो मरना ही है सोचो, दीवार खुद जाती, तो कितनी जाने बच जाती। इतने भाई यहाँ बंद हैं। किसी की देह में जान नहीं है दो-चार दिन और यही हाल रहा, तो सब मर जाएँगे।'
4. कांजीहौस में पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी?
ज. कांजीहौस में अनेक लावारिस और खोए पशु आते होंगे। कोई उन्हें बेच न दे। कोई पशु वहाँ से भाग जाए। इसलिए कांजीहौस में पशुओं की हाज़िरी ली जाती होगी।
5.हीरा - मोती का शोषण के खिलाफ आवाज उठाना और प्रताड़ना सहना हमें क्या प्रेरणा देता है? विस्तार से लिखिए।
ज. हीरा-मोती का शोषण के खिलाफ़ आवाज़ उठाना और प्रताड़ना सहना हमें सामाजिक चेतना के लिए संघर्षरत रहने की प्रेरणा देता है। हीरा-मोती जानवर होते हुए भी अन्याय नहीं सहते। वे अन्याय के विरुद्ध विद्रोह करते हैं। वे अत्याचार से संघर्ष करते हैं। वे दूसरों पर होता अत्याचार भी नहीं देख सकते। कांजी हौस में कैद जानवरों की आज़ादी के लिए वे स्वयं कष्ट मोल लेते हैं। गधे आज़ाद होना नहीं चाहते तो उन्हें मारकर बाहर ढकेल देते हैं। अत्याचारी सांप का मिलकर मुकाबला करते हैं। उसे परास्त भी करते हैं। आज समाज में मनुष्य स्वयं व अन्य लोगों पर हो रहे अन्याय को देखकर चुप रहता है। इससे अन्याय करने वालों का मन और बढ़ता है। चंद बदमाश लाखों लोगों में आतंक फैलाए रहते हैं। हमें भी उनके
खिलाफ़ संघर्ष करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। तभी समाज भ्रष्टाचार से मुक्त हो सकता है।
6. हीरा - मोती द्वारा अन्य पशुओं को स्वतंत्र कराने की चाह स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित है। स्पष्ट कीजिए।
ज. प्रेमचंद स्वयं एक स्वतंत्रता सेनानी हैं। उनके साहित्य में देश के स्वतंत्रता संग्राम की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। प्रस्तुत कहानी में हीरा-मोती स्वतंत्रता हेतु संघर्ष करते हैं। वे कांजी हौस में कैद पशुओं को आज़ाद कराते हैं। इसके बदले में उन्हें कठोर दंड मिलता है। लेकिन वे इस दंड को हँसते हुए झेल लेते हैं। मोती कहता है- "इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगे।"यही स्थिति तत्कालीन स्वतंत्रता सेनानियों की थी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से अनेक यातनाएँ सहीं। अपने प्राण तक त्याग दिए। लेकिन आज़ादी के संघर्ष को रुकने नहीं दिया। भारत माता को आज़ाद कराकर ही दम लिया।
सारांश
दो बैलों की कथा' कहानी के लेखक मुंशी प्रेमचंद जी हैं। वे हिंदी के महान कथाकार हैं। हिंदी कथा साहित्य उनके योगदान के लिए सदैव उनका ऋणी रहेगा। इस कहानी में उन्होंने किसान और गोधन प्रेम का बड़ा मनोरम चित्र उभारा है। इसमें स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष की प्रेरणा है। अतः यह कहानी परोक्ष रूप से स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी है।
कहानी की भूमिका :
जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को महामूर्ख कहना चाहते हैं तो उसे गधा कहते हैं। लेकिन वास्तव में गधे को उसके सीधेपन की सज़ा मिली है। आज के समाज में सीधे-सादे लोगों को मूर्ख ही समझा जाता है। गधे का ही एक और मित्र है- बैल। यह गधे का छोटा भाई है। इसलिए लगभग इसी पर्याय में 'बछिया के ताऊ' शब्द का भी प्रयोग होता है।
हीरा - मोती का आपसी प्रेम :
झूरी के दो बैल हैं- 'हीरा' और 'मोती। दोनों में बहुत भाईचारा है। दोनों एक -दूसरे से मूक भाषा में विचार-विनिमय करते थे। दोनों एक - दूसरे को चाटकर और सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते हैं। कभी-कभी दोनों खेल-खेल में एक-दूसरे से लड़ते हैं। जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होना ।लगता है। दोनों हल चलाते समय भी एक-दूसरे से खेलते रहते। दोनों एक - दूसरे को चाटकर अपनी थकान मिटा लिया करते। नाँद में खली-भूसा पड़ने बाद दोनों साथ मुँह डालते और साथ ही मुँह निकाल लेते।
झूरी द्वारा बैलों को ससुराल भेजना :
एक बार झूरी ने बैलों को कुछ दिनों के लिए ससुराल भेजा। उन्होंने समझा मालिक ने हमें बेच दिया। वे जाने में आनाकानी करने लगे। झूरी के साले गया को घर तक उन्हें ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। उसी रात वे गया के पास से भाग खड़े हुए।
ससुराल से भागकर हीरा - मोती का झूरी के घर पहुँचना :
झूरी प्रातःकाल सोकर उठा, तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। झूरी बैलों को देखकर स्नेह से गद्गद् हो गया। लोग भी आश्चर्यचकित थे। लेकिन उसकी घरवाली इस बात पर नाराज़ हो गई। उसने मज़दूर को भूसी में खली डालने से मना कर दिया। वे रूखा-सूखा खाकर जीवन बिताने लगे।
छोटी बालिका द्वारा बैलों को भगाया जाना :
दूसरे दिन झूरी का साला फिर आया और बैलों को लेकर चला गया। अब बैलों के साथ दुर्व्यवहार होने लगा। उन्हें चारा ठीक से नहीं दिया जाता। बात-बात पर उन्हें मारा जाता। अचानक एक छोटी सी बालिका ने उन्हें दो रोटियाँ दे दीं। उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शांत होती, पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। लड़की भैरो की थी। उसकी माँ मर चुकी थी। वह भी सौतेली माँ से मार खाती रहती थी। इसलिए इन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी। एक रात उसी लड़की ने दोनों बैलों को भगा दिया।
हीरा - मोती का सांड से मुकाबला :
अचानक हीरा, मोती का सामना एक साँड से हो गया। वे उससे नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन कोई चारा न था। दोनों एक साथ उस पर लपके। साँड को भी संगठित शत्रुओं से लड़ने का अनुभव न था। दोनों ने बहादुरी के साथ सांड का सामना किया। आखिर बेचारा ज़ख्मी होकर भाग खड़ा हुआ। दोनों विजय के उन्माद में मटर के खेत में चरने घुस गये। रखवालों ने उन्हें पकड़ लिया। प्रातःकाल दोनों मित्र कांजीहौस में बंद कर दिए गए।
कांजी हौस की दीवार गिराना :
दोनों ने देखा - यहाँ कंई भैंसें थीं, कई बकरियाँ, कई घोड़े, कई गधे पर किसी के सामने चारा न था। सब ज़मीन पर मुरदों की तरह पड़े थे उन्होंने दीवार तोड़ने का निश्चय किया ताकि अपने साथ वे इन कैद जानवरों को भी आज़ाद करा सकें। आखिरकार दीवार गिराकर ही दम लिया। दीवार गिरते ही सभी जानवर भाग खड़े हुए। लेकिन गधे डर के मारे वहीं पड़े रहे। हीरा की रस्सी न टूट सकी। इसलिए मोती भी वहीं पड़ा रहा। दोनों पकड़े गए। बाद में एक दढ़ियल कसाई ने उन्हें नीलामी में खरीद लिया।
हीरा - मोती का वापस घर लौटना :
दढ़ियल दोनों बैलों को डंडे से मारते हुए लिए जा रहा था। सहसा दोनों 1. को लगा कि वे अपने घर की ओर जा रहे हैं। वही खेत, वही बाग, वही गाँव मिलने लगे। प्रतिक्षण उनकी चाल तेज़ होने लगी। मोती ने कहा - हमारा घर नगीच आ गया। दोनों घर की ओर दौड़े। दौड़कर अपने थान पर आए और खड़े हो गए। झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था। बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा। मित्रों की आँखों से आनंद के आँसू बहने लगे। एक झूरी का हाथ चाट रहा था। दढ़़ियल बैलों को लेने आगे बढ़ा। लेकिन झूरी ने देने से इनकार कर दिया। मोती उसे गाँव के बाहर खदेड़ आया।
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