10.कन्यादान - 10th class First Language
10.कन्यादान
1. महारानी ने किस पुण्य कार्य का उल्लेख किया ?
ज. महारानी ने कन्यादान नामक पुण्य कार्य का उल्लेख किया।
2. कन्यादान के अलावा और कौन-कौन से दान होते हैं?
ज. कन्यादान के अलावा श्रमदान, ज्ञानदान, धनदान, भूदान, अन्नदान आदि दान होते हैं।
3. 'कन्यादान' शब्द की सार्थकता के बारे में बताइए।
ज. विवाह में माता-पिता द्वारा बेटी का हाथ वर के हाथों में देना कन्यादान कहलाता है। यह एक सांस्कृतिक परंपरा है। भारतीय संस्कृति में कन्यादान का विशेष महत्व है। यह विवाह के लिए माता-पिता की अनुमति का प्रतीक है। भारत में कन्यादान पुण्य कार्य माना जाता है।
उद्देश्य
ऋतुराज |
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
संदर्भ सहित व्याख्या :
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
संदर्भ : प्रस्तुत कविता हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'उमंग- २' के 'कन्यादान' नामक कविता पाठसेलिया गया है। इसके कवि ऋतुराज जी हैं। वे आधुनिक कवियों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में उन्होंने माँ और बेटी के अनोखे बंधन को अनोखे ढंग से दर्शाया है।
व्याख्या : बेटी का विवाह हो रहा है। माँ कन्यादान के अवसर पर अत्यंत दुःखी है। दुःख से भारी उसकी चिंता है। क्योंकि माँ और बेटी का अत्यंत गहरा संबंध है। यह बंधनों सभी रिश्तों से भिन्न है। माँ-बेटी एक-दूसरे की शुभ चिंतक है। बेटी अनेक प्रकार से माँ की सेवा करती है। माँ भी अपना दुःख बेटी से ही बाँटती है। इसलिए माँ द्वारा अपनी बेटी को अंतिम पूँजी समझना स्वाभाविक ही है।
कविता -2
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
संदर्भ : प्रस्तुत कविता हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'उमंग- 2' के 'कन्यादान' नामक कविता पाठ से लिया गया है। इसके कवि ऋतुराज जी हैं। वे आधुनिक कवियों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में कन्यादान के समय एक माँ द्वारा अपनी बेटी को दिया गया संदेश है। किंतु यह संदेश परंपरागत नहीं है। इस संदेश में भी रूढ़ियों का विरोध है।
व्याख्या : बेटी की चिंता है क्योंकि उसकी बेटी अभी समझदार नहीं थी। उसका विवाह कम उम्र में हो रहा था। वह बड़ी भोली और सरल थी। जीवन के सुख-दुख से उसका सामना अब तक नहीं हुआ था। यहाँ तक कि उसे अपना दुख प्रकट करना भी नहीं आता था। अब वह नये घर जा रही थी। उसे अब नये रूपों में ढलना था। अतः माँ अपनी बेटी के भविष्य की चुनौतियों को लेकर चिंतित थीं।
कविता -3
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं I
संदर्भ : प्रस्तुत कविता हमारी हिंदी पाठयपुस्तक 'उमंग- 2' के 'कन्यादान' नामक कविता पाठ से लिक्ष गया है। इसके कवि ऋतुराज जी हैं। वे आधुनिक कवियों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। प्रस्त पंक्तियों में कन्यादान के समय एक माँ द्वारा अपनी बेटी को दिया गया संदेश है। किंतु यह संदेश परंपरागत नहीं है। इस संदेश में भी रूढ़ियों का विरोध है।
व्याख्या : माँ अपनी बेटी से कहती है कि कभी अपने सौंदर्य का गर्व मत करना। कभी तुम आभूषणों द सौंदर्य प्रसाधनों के मायाजाल में मत फँसना। कभी लोगों द्वारा की गई रूप की प्रशंसा पर मत इतराना क्योंकि इस प्रशंसा ने ही नारी को आज तक प्रताड़ित किया है। रूप सौंदर्य आग की तरह है। जिस प्रकार आग से रोटियाँ सेंकी जाती हैं उसमें जला नहीं जाता उसी प्रकार रूप सौदर्य भी हमारे लाभ के लिएहै इससे हमारी हानि नहीं होनी चाहिए।
कविता -4
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
संदर्भ : प्रस्तुत कविता हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'उमंग- 2' के 'कन्यादान' नामक कविता पाठ से लिया (गाया है। इसके कवि ऋतुराज जी हैं। वे आधुनिक हिंदी कवियों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ में कन्यादान के समय माँ अपनी बेटी को वस्त्रों एवं आभूषणों के मायाजाल से सावधान रहने को कह रही है।
व्याख्या : माँ अपनी बेटी से कन्यादान के समय कहती है कि वस्त्र और आभूषण नारी जीवन के बंधन है। इन पर तुम कभी मोहित मत होना। इनके माध्यम से लोग हमसे छल करते हैं। ये हमारे भ्रम हैं। अतः कभी इस भ्रमजाल में मत फसना।
भाषा की बात :
कोष्ठक में दी गई सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए।
1.बाँचना, सयानी, आभास (अर्थ लिखिए।)
बाँचना = पढ़ना
सयानी = योग्य
आभास = एहसास
2. वस्त्र, प्रकाश, आभूषण (पर्याय शब्द लिखिए।)
वस्त्र = कपड़ा, परिधान, वसन
प्रकाश = रोशनी, उजाला
आभूषण = गहना, अलंकार
3.पाटिका, लेखक, कवि (लिंग बदलकर वाक्यप्रयोग कीजिए।)
पाठिका = पाठक वाक्य प्रयोग : वह जयशंकर प्रसाद की पाठिका है।
लेखक = लेखिका वाक्य प्रयोग : प्रेमचंद एक महान लेखक हैं।
कवि = कवयित्री वाक्य प्रयोग : दिनकर एक महान कवि है।
वस्त्राभूषण, कन्यादान, प्राणाधार (विग्रह कर समास पहचानिए।)
ज. वस्त्राभूषण - स्त्री का आभूषण (तत्पुरुष समास)
कन्यादान कन्या का दान (तत्पुरुष समास व बहुव्रीहि समास)
प्राणाधार - प्राणों का आधार (तत्पुरुष समास)
(इ) अंतिम पूंजी, धुंधले प्रकाश, लयबद्ध पंक्ति (पद परिचय दीजिए)
अंतिम, धुंधला और लयबद्ध तीनों विशेषण हैं। ये क्रमशः पूँजी, प्रकाश और पंक्ति की विशेषता बता रहे हैं।
3.पाठ में आये संज्ञा शब्दों में से पाँच विशेषण बनाइए।
ज. प्रकाश- प्रकाशित, दान-दानी, सुख- सुखी , दुख- दुखी, भ्रम-भ्रमित
कन्यादान' कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
'कन्यादान' कविता के कवि ऋतुरात जी हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी दोनों ही भाषाओं पर अपनी
समान पकड़ रखते हैं। उनकी कविताएँ दैनिक जीवन से जुडी हैं। इस कविता में कन्यादान के
अवसर पर बेटी को माँ द्वारा दी गई सीख का चित्रण है। यह सीख परंपरागत आदर्शों से हटकर
है। माँ का मानना है कि समाज द्वारा ही स्त्रियों का शोषण होता है। वास्तव में समाज द्वारा
स्त्रियों के लिए बनाए गए आचरण के प्रतिमान गलत हैं। वे स्त्रियों पर बंधन है।
ये उनके पैरों में बाँधी गई बेड़ियाँ हैं। यहाँ माँ, बेटी को सीख देती हुई कहती है कि लोग कोमलता को
स्त्री का श्रृंगार मानते हैं। लेकिन इसे महिलाओं की कमज़ोरी भी समझा जाता है। अतः कोमलता
केगौरव में कमज़ोरी का उपहास छिपा रहता है। विदाई के अवसर पर माँ की पीड़ा स्वाभाविक होती
है। माँ को लगता है कि बेटी उसकी अंतिम बचीपूँजी है।
उसे भी वह दान में दे रही है। उसे अपनी बेटी की चिंता है। उसकी बेटी अभी सयानी नहीं हैं। वह
समझदार नहीं है। उसे केवल सुख का आभास है। वह अपना दुख कहना भी नहीं जानती। माँ कहती
है कि अपना चेहरा देखकर अपनी सुंदरता पर मत रीझना। अपने सौंदर्य पर मत इतराना। वस्त्र और
आभूषण शब्दों के भ्रमजाल की तरह हैं, उनके लालच में मत पड़ना। ये सब महिलाओं की सुंदरता
नहीं कमज़ोरी बढ़ाते हैं। ये सब स्त्री-जीवन को बंधन में डालने का कारण बनते हैं। आग रोटी सेंकने
के लिए होती है, जलने के लिए नहीं। इसलिए तुम लड़की होकर भी लड़की जैसी न दिखाई देना।
इसलिए लड़की की तरह मर्यादित तो रहना परंतु लड़की की तरह केवल भोली बनकर मत रहना। हर
तरह से सावधान रहना, सजग रहना। जीवन की हर परिस्थितियों का निर्भय होकर सामना करना।
अतः कन्यादान कविता में कवि ने नारी संबंधी शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाई है। वे इसके लिए
स्वयंकविताकितनकी प्रेरणा दे रहे हैं। नारी को ही जागने की प्रेरणा दे रहे हैं।
धन्यवाद
Youtube Video - कन्यादान - 10th Class First Language Lesson
Youtube Channel - Disha Hindi Classes
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Thanks
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