5. गोभी का फूलl
-केशवचंद वर्मा
लेखक परिचय
केशवचंद वर्मा हिंदी के सुप्रसिद्ध व्यंग्य साहित्यकार हैं। इनका जन्म 23 दिसंबर 1925 को हुआ था। इनका रचनाओं में हास्य रस के मिश्रण के साथ व्यंग्य देखने को मिलता है। इनकी प्रमुख रचनाएँ 'लोमड़ी का मांस', 'प्यासा और पानी के लोग', 'बृहन्नला का व्यक्तित्व', 'गधे की बात' आदि हैं। गंभीर विषयों को सहज ढंग से प्रस्तुत कर देना इनकी साहित्यिक विशेषता रही है।
सिलसिला = क्रम
कुंजड़े = तरकारी बेचनेवाले
तुलवाने = वजन मपवाना
सौदे = बेचने या खरीदने की सामग्री
मर्ज़ = बीमारी
कत्था = पान में लगाने का एक पदार्थ
विशद = बड़ा
झाबा = झोला
सोया-मेथी = पत्तेदार सब्जियों के नाम
सुहृद = मिलनसार
मौसमी = विशेष मौसम में प्राप्त होने वाली
फ़रमाइश = अभिलाषा
शामत के मारे = मुसीबत के मारे
मद्धिम = धीरे
आँच = ताप
महात्म्य = महत्व
डंठल = नाजुक लड़की
संजीदगी = गंभीरता
आश्वासन = भरोसा
ठसाठस = सघन, घना
अब न चूक चौहान = मौका हाथ से न निकले
हया = शर्म
तिलभर = तनिक भी
निःशस्त्रीकरण = हथियार नष्ट करना
ट्रंक = बक्सा
उम्मीदवार = जो चुनाव में खड़ा हो
प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
1.हद से ज्यादा सावधानी बरतना कहाँ तक उचित है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
ज. सावधानी बरतने की भी एक सीमा होती है। अधिक सावधानी बरतने वाला इंसान शक्की कहा जाता लोग उसका मज़ाक उड़ाते हैं। वास्तव में किसी भी चीज़ की अति ठीक नहीं होती।
2.बाबू हनुमान प्रसाद जैसे किसी व्यक्ति का सामना हुआ तो आप क्या करेंगे?
ज. मैं बाबू हनुमान प्रसाद को समझाता कि संसार में केवल सब्जियाँ ही नहीं है। संसार में सब्जियों के अलावा भी बहुत कुछ देखने लायक है। इसलिए वे सब्जियों की दुनिया से बाहर निकलकर संसार के अन्य तत्वों का भी आनंद लें।
3.सब्जी मंडी में कोई भी बाबू हनुमान प्रसाद को अपनी दुकान पर बुलाना नहीं चाहता था। क्यो?
ज, बाबू हनुमान प्रसाद को बाज़ार में सभी कुंजड़े पहचानते थे। वे ही घर की साग-सब्ज़ी इस बाज़ार से रोज़ खरीदकर ले जाते हैं। हरे धनिए की गड्डी पैसे-पैसे या दो पैसे की तीन लेना, शलजम को पत्ते तुड़वाकर तुलसी का आग्रह करना, आलू छाट-छाँटकर चढ़वाना, सड़ा कुम्हड़ा दूसरे दिन कटा हुआ वापस कराना और अरवी धुलवाकर, मिट्टी हटाकर लेना आदि अनेक ऐसी बातें हैं जिनके कारण सब्ज़ीमंडी का कोई कुंजड़ा उन्हें अपने पास नहीं बुलाना चाहता था। क्योंकि उनसे हानि की संभावना बनी रहती है।
4.रेलगाड़ी में लेखक को किस प्रकार के अनुभवों का सामना करना पड़ा ?
ज. रेलगाड़ी में बहुत भीड़ थी। लेखक को गोभी के झाबे के कारण लोग धकियाते हुए सुझाव देने लगे। एक कहा - 'साहब! उधर ले जाएँ ना।' दूसरा बोला - 'बैंच के नीचे कर दीजिए।' लेखक ने देखा कि सुझाव बहुत मिले पर कोई अपनी जगह तिल भर हिलने को तैयार न था। इस तरह गोभी के फूलों का झाबा वही नीचे पड़ा रहा। और लोगों के लात - घूँसों से नहीं बच सका। लेखक का कहना है कि जब आदमी 'जनता' हो जाता है, तो कोई किसी का नहीं सुनता।
5.लेखक के द्वारा लाये गये गोभी के फूल की तुलना हारे हुए उम्मीदवार से क्यों की गयी होगी?
ज. रेल में भीड़ के कारण गोभी का फूल मुरझा गये थे। वे लोगों के लात - घूँसे खाकर टूट चुके थे। गोभी के ताज़े फूल अब बड़े उदास लग रहे थे हारे हुए उम्मीदवार की हालत भी ऐसी ही होती है। यही कारण है कि लेखक ने गोभी के टूटे फूलों की तुलना हारे हुए उम्मीदवार से की।
6. लेखक की जगह आप होते तो अपने मित्र की इच्छा कैसे पूरी करते?
ज. लेखक की जगह मैं होता तो उसे अपनी इच्छा बदलने के लिए कहता। उससे कहता कि मँगवानी भी है तो कोई अन्य वस्तु मँगवा ले। यदि वह नहीं मानता तो मैं पहले ही मन बना लेता कि मुझे गोभी का फूल लखनऊ से नहीं खरीदना है। मैं चुपचाप वापस आने के बाद गोभी के फूल अपने ही शहर के बाज़ार से खरीद कर उसे दे देता। इस प्रकार वह भी खुश रहता और मुझे भी मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ता।
7."लखनऊ में मिलने वाली सस्ती तरकारी पर उनका एक सारगर्भित भाषण सुनकर अभी लौटा हूँ।" इस पंक्ति से लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए।
ज. लेखक इलाहाबाद से लखनऊ जा रहा था। बाबू हनुमानप्रसाद ने उसे वहाँ से गोभी के फूल लाने का आग्रह किया। हनुमानप्रसाद को हरी सब्ज़ी का मर्ज है। किस सब्ज़ी में कितने विटामिन होते हैं, कितना लोहा, कितना चूना, कितना कत्था, कितनी लड़की, कितना ईट, कितना गारा वगैरह होता है- इसका उन्हें विशद ज्ञान है। लेखक उनकी बात को इंकार नहीं कर पाया। बड़ी मुश्किल से लेखक ने लखनऊ के बाजार से गोभी के फूल खरीदे। लेकिन लौटते समय ट्रेन में बड़ी भीड़ थी। गोभी के फूलों का झाबा लोगों के लात-घुसे खाता रहा। इलाहाबाद पहुँचते-पहुँचते गोभी के फूल हारे हुए उम्मीदवार की तरह बिखर चुके थे। लेखक असमंजस में पड़ गया। वह टूटे-बिखरे गोभी के फूल उन्हें नहीं दे सकता था। इसलिए उसने वहीं इलाहाबाद के सब्जी बाज़ार से महंगे गोभी के फूल खरीदे और बाबू हनुमान प्रसाद को भेंट कर आया। इतना करने के बाद भी लेखक को हनुमान प्रसाद का सस्ती तरकारी के बारे में
सारगर्भित भाषण झेलना पड़ा।
8.ताज़े साग - सब्जियों से होने वाले लाभ बताइए।
ज. ताज़े साग - सब्जियों के सेवन से अनेक लाभ है। इससे अनेक बीमारियाँ दूर रहती हैं और स्वास्थ्य बना रहता है। आज कल लोग सब्ज़ियाँ खरीदकर रख देते हैं और उसे बहुत दिनों बाद खाते हैं। इस कारण उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। अनेक बीमारियों से लोग ग्रसित हो रहे हैं। शहरों में ताज़ी सब्जियां भी बड़ी मुश्किल से मिलती हैं। वासी सब्जियों में फफूँदी लगने का खतरा रहता है। ऐसी सब्जियां स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। इसी कारण हमें प्रयास करना चाहिए कि हम ताज़ी सब्जियाँ खायें। ताज़ी सब्जियां खाने से आँखों की रोशनी भी अच्छी रहती है। हरी ताज़ी सब्जियाँ हमारे पाचनतंत्र को भी रोग मुक्त करती है। शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाती हैं।
9.बाबू हनुमान प्रसाद कैसे स्वभाव के आदमी हैं ?
ज. बाबू हनुमान प्रसाद को हरी सब्जी का मर्ज़ है। सारे संसार में यदि किसी वस्तु को वे आदि कारण मानते हैं, तो वह है- 'हरी सब्जी। व सब्जियों पर भाषण देना बहुत पसंद करते हैं। वे हर समस्या का हल हरी सब्जी को मानते हैं। वे किसी को कहीं बाहर आते-जाते देखते हैं, तो मौसमी तरकारी की फ़रमाइश जरूर कर देते हैं।
10. सब्जी विक्रेता बाबू हनुमान प्रसाद को अपनी दुकान पर क्यों नहीं आने देना चाहते थे ?
ज. बाबू हनुमान प्रसाद को सब्जियों का मर्ज है। बाज़ार में सभी कुंजड़े पहचानते हैं। घर की साग-सब्जी वे ही बाज़ार से रोज़ खरीदकर ले जाते हैं। हरे धनिए की गड्डी पैसे-पैसे या दो पैसे की तीन लेना, शलजम को पत्ते तुड़वाकर तुलवाने का आग्रह करना, आलू छाट-छाँटकर चढ़वाना, सड़ा कुम्हड़ा दूसरे दिन कटा हुआ वापस कराना और अरबी धुलवाकर, मिट्टी हटाकर लेना आदि के कारण कोई मन से उन्हें अपनी दुकान पर नहीं बुलाना चाहता।
11.'गोभी का फूल' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए I
ज. गोभी का फूल' एक व्यंग्य रचना है। इसके व्यंग्यकार श्री केशवचंद वर्मा जी है। प्रस्तुत व्यंग्य में दर्शाया है कि हद से अधिक व्यावहारिकता निभानेवाले लोगों को किस प्रकार मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। इस रचना में वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों पर भी अप्रत्यक्ष रूप से व्यंग्य किया गया है। व्यंग्य के मुख्य पात्र बाबू हनुमान प्रसाद हैं। उन्हें सब्जियों का मर्ज है। बाज़ार में सभी कुंजड़े पहचानते हैं। घर की साग-सब्जी का ही बाज़ार से रोज़ खरीदकर ले जाते हैं। हरे धनिए की गड्डी पैसे-पैसे या दो पैसे की तीन लेना, शलजम के पत्ते तुड़वाकर खाने का आग्रह करना, आलू छाँट-छाँटकर चढ़वाना, सड़ा कुम्हड़ा दूसरे दिन कटा हुआ वापस कराना और अरबी धुलवाकर, मिट्टी हटाकर लेना आदि के कारण कोई मन से उन्हें अपनी दुकान पर नहीं बुलाना चाहता। बाबू हनुमान प्रसाद को हरी सब्जी का मर्ज़ है। सारे संसार में यदि किसी वस्तु को वे आदि कारण मानते हैं, तो वह है- 'हरी सब्जी। वे सब्जियों पर भाषण देना बहुत पसंद करते हैं। वे हर समस्या का हल हरी सब्जी को मानते हैं वे किसी को कहीं बाहर आते-जाते देखते हैं, तो मौसमी तरकारी लाने को कह देते हैं।
एक दिन लेखक इलाहाबाद से लखनऊ जा रहा था। बाबू हनुमान प्रसाद मिल गये। उन्होंने लेखक से लखनऊ से गोभी के फूल लाने को कह दिया। वे भी दो-दो आने के। लेखक अपनी व्यावहारिकता केकारण कुछ कह नहीं पाया। उसने लखनऊ की मंडी से बड़ी मुश्किल से गोभी के फूल खरीदे। प्लेटफार्म पर लोग उसकी खूबसूरत अटैची के साथ गोभी का झाबा देखकर हैरान थे। रेलगाड़ी में बहुत भीड़ थी। लेखक को गोभी के झाबे के कारण लोग धकियाने लगे। वे लेखक को सुझाव देते। एक ने कहा - 'साहब! उधर ले जाएँ ना' दूसरा बोला- 'बैंच के नीचे कर दीजिए।' लेकिन कोई अपनी जगह से तिलभर हिलने को तैयार न था। इस तरह गोभी के फूलों ने लोगों के अनेक लात घूसे खाये। लेखक कहते हैं कि जब आदमी 'जनता' हो जाता है, तो कोई किसी का नहीं सुनता। लेखक बड़ी मुश्किल से ट्रेन में धक्के खाते उन गोभी के फूलों की सुरक्षा करते हुए इलाहाबाद पहुँचता है। किंतु वह गोभी के फूलों को बचा नहीं पाता। वह फिर से इलाहाबाद के सब्जी बाज़ार जाकर महँगे व अच्छे गोभी के फूल खरीदता है और बाबू हनुमान प्रसाद को लखनऊ के बताकर दे आता है। इस पाठ में लेखक ने बड़े ही कलात्मक ढंग से हास्य शैली का मिश्रण किया है। बीच-बीच में भारतीय राजनीति पर भी व्यंग्य है ।
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