उपवाचक-1 मंगल, मानव और मशीन-श्री विनोद
उपवाचक-01
मंगल, मानव और मशीन
-श्री विनोद
1. मंगल ग्रह की विश्वकल्याण की भावना क्या है?
ज. मंगल ग्रह के प्राणियों का उद्देश्य व्यक्ति, जाति, धर्म, भाषा और राष्ट्र के हित से बहुत ऊपर उठकर समस्त ब्रह्मांड का हित है। उनका ध्येय विश्वकल्याण है। वे उस संस्कृति में विश्वास करते हैं जो एक और अविभाज्य है। वे प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर भूलोकवासियों को सद्बुद्धि और पारस्परिक सद्भावना प्रदान करें। भ्रातृत्व ही उनका धर्म है और हृदय ही उनका पूजाघर। उनका उद्देश्य समस्त ग्रहों का संघ स्थापित करने का है। उसमें वे भू-लोक को भी सम्मिलित करना चाहते हैं। वे मंगल, मानव और मशीन का समन्वय करना चाहते हैं। यही मंगल ग्रह की विश्वकल्याण की भावना है।
2. मंगल ग्रह के लोग मानव के संदर्भ में क्या विचार रखते हैं?
ज. मंगल ग्रह के लोग मानव को बहुत घमंडी समझते हैं। उनका मानना है कि मनुष्य आपस में हमेशा लड़ते रहते हैं। वे मशीनों के गुलाम बन गये हैं। वे अपने नाम के लिए एक-दूसरे को पीछे ढकेलते रहते हैं। वे हिंसा को बढ़ावा देते हैं। वे समाज व विश्वकल्याण की संस्थाएँ बनाकर उनका उपयोग स्वार्थ साधन के लिए करते हैं। उनका मानना है कि मानव बड़ा ही महत्वाकांक्षी प्राणी है। वे धर्म, जाति, संप्रदाय, देश,प्रदेश के नाम पर एक दूसरे से विभाजित है।
3. इस एकांकी में मशीनी सभ्यता पर किया गया व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
इस एकांकी में मंगल ग्रह का प्राणी मेधावी मानवों से कहता है - "आपने मशीनें बनायीं, पर आज वे. आपकी स्वामिनी हैं, आप उनके दास है। मानव स्वयं एक मशीन बन गया है, जिसके दिमाग तो हैं, पर हृदय नहीं। शांति की दुहाई देना ढोंग है। सब एक-दूसरे के रक्त के प्यासे है।" इस प्रकार मंगल ग्रह के प्राणियों ने मनुष्य की यांत्रिक बनने पर व्यंग्य किया है। यह सत्य भी है क्योंकि आज हमारे समाज में प्रत्येक काम मशीनों से होने लगा है और मनुष्य के महत्व को धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं।
4. 'मंगल-लोक' नाम की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
ज.मंगल लोक की सार्थकता यही है कि वे संपूर्ण ब्रह्मांड का कल्याण चाहते हैं। उनकी सभी ग्रहों के प्राणियों पर दृष्टि है। मंगल ग्रह के प्राणियों का उद्देश्य व्यक्ति, जाति, धर्म, भाषा और राष्ट्र के हित से बहुत ऊपर उठकर समस्त ब्रह्मांड का हित है। उनका ध्येय विश्वकल्याण है। वे उस संस्कृति में विश्वास करते हैं जो एक और अविभाज्य है। वे प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर भूलोकवासियों को सद्बुद्धि और पारस्परिक सद्भावना प्रदान करें। भ्रातृत्व ही उनका धर्म है और हृदय ही उनका पूजा घर। उनका उद्देश्य समस्त ग्रहों का संघ स्थापित करने का है। उसमें वे भू-लोक को भी सम्मिलित करना चाहते हैं। वे मंगल, मानव और मशीन का समन्वय करना चाहते हैं। अतः मंगल लोक के वासी वास्तव में अपने ग्रह के नाम की सार्थकता सिद्ध कर रहे हैं।
5. इस एकांकी की भाषा शैली पर अपने विचार बताइए।
ज. इस एकांकी की भाषा शैली बहुत सरल एवं सुबोध है। वाक्य छोटे-छोटे व प्रभावी हैं। एकांकी में संवादों की प्रमुख भूमिका होती है। इसके संवाद वैज्ञानिक विषय पर आधारित होते हुए भी बोलचाल की भाषा में हैं। इसमें तत्सम शब्द जैसे- यंत्र, भूगोल, महत्वाकांक्षा, चंद्रलोक, विकृत, स्वामी, सामीप्य, प्रतिध्वनि आदि का सुंदर प्रयोग है। साथ ही इस एकांकी में अंग्रेज़ी की प्रचलित सामग्री का भी प्रयोग हुआ है, जैसे - स्विच, रॉकेट, बटन, ऑक्सीजन आदि। इसमें उर्दू शब्द जैसे शेरवानी आदि का भी प्रयोग है। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि इस एकांकी की भाषा आम बोलचाल की भाषा है। संवाद अत्यंत सजीव एवं स्वाभाविक है।
6. मंगल ग्रह के वासी विश्व का कल्याण किस प्रकार करना चाहते है?
ज. मंगल ग्रह के वासी संपूर्ण ब्रह्मांड का कल्याण चाहते हैं। उनका मानना है कि व्यक्ति, जाति, धर्म, भाषा, राष्ट्र से ऊपर समस्त ब्रह्मांड का हित है। उनका ध्येय विश्वकल्याण है। उनका मानना है कि मानवता अविभाज्य है। वे प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर भूलोकवासियों को सद्बुद्धि और पारस्परिक सद्भावना प्रदान करें । भ्रातृत्व ही उनका धर्म है और हृदय ही उनका पूजा घर। उनका उद्देश्य समस्त ग्रहों का संघ स्थापित करना है । वे भूगोल को भी उसमें सम्मिलित करना चाहते हैं। वे मंगल, मानव और मशीन का समन्वय करना चाहते हैं । वे चाहते हैं कि मानव मशीन का गुलाम न बने। वह अपने आविष्कारों को
विश्वकल्याण के लिए उपयोग करे। वह धर्म, जाति, जमीन आदि के नाम पर आपस में लड़ना छोड़ दे। सभी ग्रह के वासियों में भी एकता हो। सब सद्भाव के साथ मिलजुलकर रहें। जिससे विश्व का कल्याण हो।
7. 'मंगल, मानव और मशीन' पाठ मानवतावाद का सफल उदाहरण है। स्पष्ट करें।
ज. 'मंगल, मानव और मशीन' का केंद्र मानवतावाद है इसमें मानवीय मूल्यों का समावेश है। आज विकास के साथ, मानव, मानव मूल्यों को भूलता जा रहा है। उन्हें लेखक मंगल ग्रह के वासियों याद दिलाने का प्रयास कर रहा है। इस पाठ में मानव की कमज़ोरियों पर प्रकाश डाला गया है जिससे माध्यम से पुनः मानवतावाद की हानि होती है। मंगल ग्रह के प्राणी व्यक्ति, जाति, धर्म, भाषा और राष्ट्र के हित से बहुत ऊपर उठकर समस्त ब्रह्मांड का हित चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मनुष्य आपस में नफरत न करें। वे अपने विकास के लिए दूसरे ग्रह के लोगों की क्षति न करें। वे पर्यावरण को नष्ट न करें। उनका ध्येय विश्वकल्याण है। उनका मानना है कि संस्कृति अविभाज्य है। उनकी प्रार्थना है कि ईश्वर भूलोकवासियों को सद्बुद्धि और पारस्परिक सद्भावना प्रदान करें। भ्रातृत्व ही उनका धर्म है और हृदय ही उनका पूजा घर। उनका उद्देश्य समस्त ग्रहों का संघ स्थापित करने का है। वे मंगल, मानव और मशीन का समन्वय करना चाहते हैं।
8.मंगल ग्रह के वासी मनुष्य की किन बुराइयों के कारण उसे बुरा मानते हैं?
ज. मंगल ग्रह के लोगों के अनुसार मनुष्यों में अनेक प्रकार की दुर्बलताएँ हैं। मानव घमंडी है। वे आपस में हमेशा लड़ते रहते हैं। वे मशीनों के गुलाम बन गये हैं वे अपने नाम के लिए एक दूसरे को पीछे ढकेलते रहते हैं। वे हिंसा को बढ़ावा देते हैं। वे समाज व विश्वकल्याण की संस्थाएँ बनाकर उनका उपयोग स्वार्थ साधने के लिए करते हैं। उनका मानना है कि मानव बड़ा ही महत्वाकांक्षी प्राणी है। वे धर्म, जाति, संप्रदाय, देश, प्रदेश के नाम पर एक दूसरे से विभाजित है। उनका मानना है कि मनुष्य आज अपने ही द्वारा बनाई गई मशीनों के गुलाम हो गए हैं। मानवता भूल गए हैं वे पर्यावरण को अपने कार्यों से नुकसान पहुँचा रहे हैं। उन्हें अपने विकास पर बहुत गर्व हो गया है। वे मानव होकर भी मानव धर्म भूल गए हैं। इन कारणों से मंगल ग्रह के लोग मनुष्यों को बुरा मानते हैं।
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