3.एक कहानी यह भी
3.एक कहानी यह भी
* मन्नू भंडारी हिंदी की कुशल लेखिका हैं। इनका जन्म 1931 में मध्यप्रदेश के भानपुरा नामक गाँव में हुआ। वे स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। इनके साहित्य में नारी के समस्याओं का चित्रण हुआ है। उन्होंने वर्तमान समाज के यथार्थ से हमें अवगत कराया है। इनकी कहानियाँ प्रेरणादायक होती है। मैं हार गयी’ तीन निगाहों की एक तस्वीर, अकेली, एक प्लेट सैलाब, यही सच है, आपका बंटी, एक इंच मुस्कान आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं ।
1. समाज के विकास में नारी की क्या भूमिका है?
ज. नारी समाज व परिवार की रीढ़ है। उसे आदिगुरु भी कहा गया है। उसके दिये संस्कार जीवन भर बच्चों के काम आते हैं। अतः वह आदर्श नागरिकों का निर्माण करती है। आज नारी विकास के हर क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रही है वह घर और बाहर दोनों ही जगह अपने दायित्व को बखूबी निभाने में सक्षम है। अतः समाज के विकास में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका है।
2. नारी को दिव्य स्वरूपिणी क्यों कहा गया होगा?
ज. नारी में अनेक गुण है। प्रेम, अनुराग, सौंदर्य, संवेदना, साहस आदि अनेक गुणों से नारी युक्त होने के कारण नारी को दिव्य स्वरूपिणी कहा गया होगा।
3. मन्नू भंडारी के पिताजी कैसे स्वभाव के थे?इसका क्या कारण हो सकता है?
ज. लेखिका के पिता जी बड़े महत्वाकांक्षी थे। उनमें यश और प्रतिष्ठा की भूख थी। वे धुन के पक्के थे। इसी महत्वाकांक्षा के कारण धनाभाव में भी उन्होंने एक विषयवार शब्दकोश बनाया। इसी कारण उन्हें अपना नाम खराब होने का भय बना रहता था। वे अति क्रोधी और शक्की थे। उनमें संतान की शिक्षा के प्रति विशेष सजगता थी। वे अपने पैसों की कमी के कारण बच्चों की शिक्षा में कोई कमी नहीं करते थे।
4.लेखिका के बचपन के समाज व आज के समाज में क्या अंतर है?
ज. लेखिका के बचपन का समय स्वतंत्रता संग्राम का काल था। चारों ओर देशभक्ति का माहौल था। लोग स्वतंत्रता की सुबह देखने के लिए आतुर थे। पर देश देशभक्ति की भावना में सराबोर था। आज लोगों में देशभक्ति की कमी आई है। लेकिन उस समय लड़कियों को पढ़ने की स्वतंत्रता नहीं थी। आम सभाओं में वे भाग नहीं ले सकती थीं। आज की स्थिति इस बारे में अलग है। आज लड़कियाँ प्रत्येक क्षेत्र में विकास करने के लिए स्वतंत्र हैं।
5.आजकल के पड़ोस कल्चर के बारे में लेखिका के क्या विचार हैं?
ज. लेखिका का मानना है कि पड़ोस-कल्चर का हमारे जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। आदर्श के जितने मापदंड होते हैं वे प्रायः पड़ोस की देन होते हैं। परस्पर समूह का बोध पड़ोस से ही होता है। सहानुभूति और सहयोग की भावना का उदय पड़ोस से ही होता है। आजकल शहरों की फ्लैट संस्कृति ने लोगों को पड़ोस की संस्कृति से अलग कर दिया है। वह अकेला है, असुरक्षित है। वह फ्लैट में अन्य ज. परिवारों के साथ रहते हुए भी अपने बंद कमरे तक सीमित हो गया है। यहाँ तक कि एक-दूसरे से सामान्य कुशलता पूछने की भी फुरसत नहीं है।
6.पिताजी ने रसोईघर को भटियारखाना क्यों कहा था?
ज. पिताजी का मानना था कि रसोईघर एक लड़की के दायरे को सीमित बना देता है। वह उससे बाहर नहीं निकल पाती। इस कारण उसका सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता। इसलिए पिताजी रसोईघर को भटियारखाना कहा। उनके अनुसार रसोईघर एक ऐसा भटियारखाना था जहाँ भट्ठी सुलगती ही रहती है। कुछ न कुछ काम होता ही रहता है। वहाँ रसोई के अलावा किसी अन्य योग्यता का विकास नहीं हो सकता।
7. लेखिका के पिताजी उन्हें बहसों में बैठने को क्यों कहा करते थे?
ज. लेखिका के पिताजी का मानना था कि रसोईघर में रहकर सारी प्रतिभाएँ कुंठित हो जाती हैं। उनके घर राजनैतिक बहस चलती रहती थी। इसमें राजनीति, देश, देशभक्ति और शहीदों की चर्चाएँ होती थीं। इसलिए वे चाहते थे कि लेखिका उन लोगों के बीच बैठे, चर्चाएँ सुने और समझे।
8. लेखिका का साहित्य से संबंध कैसे जुड़ा?
ज. लेखिका जब ‘फर्स्ट इयर’ में थीं तो हिंदी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से उनका परिचय हुआ। उन्होंने बाकायदा साहित्य की दुनिया में प्रवेश करवाया। उन्होंने खुद चुन-चुनकर पढ़ने के लिए किताबें दीं। पढ़ी हुई किताबों पर बहसें की। इस प्रकार दो साल बीतते-बीतते लेखिका ने शरत, प्रेमचंद, जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा आदि को पढ़ लिया। जैनेंद्र जी के छोटे-छोटे सरल-सहज वाक्यों ने लेखिका को प्रभावित किया। इस प्रकार लेखिका का साहित्य से संबंध जुड़ गया।
9. शीला अग्रवाल से लेखिका कैसे प्रभावित हुई?
ज. शीला अग्रवाल एक प्रतिभावान महिला थीं। उन्होंने साहित्य और अपनी जोशीली बातों से लेखिका और उनके मित्रों में देश-प्रेम की भावनाएँ विकसित की। परिणाम यह हुआ कि लेखिका व उनके साथी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने लगे। हड़ताल, भाषण आदि में लेखिका का ही नेतृत्व रहने लगा।
10.’आज़ाद हिंद फ़ौज’ के बारे में तुम क्या जानते हो?
ज. ‘आज़ाद हिंद फ़ौज” का गठन सुभाष चंद्र बोस ने किया था। यह अँग्रेज़ों का विरोध करने वाली भारत की सशस्त्र स्वयंसेवी सेना थी। स्वतंत्रता संग्राम में इसका बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है।
11. लेखिका के पिताजी किन अंतर विरोधियों में रहकर जीवन बिता रहे थे?
ज. लेखिका के पिताजी के मन में अनेक अंतर विरोध थे। वे एक ओर अपनी विशिष्ट छवि बनाने की लालसा रखते थे तो दूसरी ओर अपनी सामाजिक छवि के प्रति सजग भी रखते थे। वे कभी लेखिका को बाहर जाने से रोकते थे तो कभी उनके बाहरी कार्यक्रमों में भाग लेने की प्रशंसा करने लगते।
12.मन्नू से नाराज़ पिताजी क्यों उन्हें देखकर गर्व का अहसास कर रहे थे?
ज. लेखिका ने एक बार बीच चौराहे पर भाषण दिया। क्योंकि आजाद हिंद फ़ौज के मुकदमे के सिलसिले में कॉलेजों, स्कूलों, दुकानों के लिए हड़ताल का आह्वान था। लेखिका के पिताजी के एक दकियानूस मित्र थे। उन्होंने लेखिका के पिता को भड़काते हुए कहा कि ‘मन्नू की मत मारी गई है हड़ताले करवा कर हुड़दंग मचा रही है….’ इस पर पिताजी क्रोधित हो गये। लेखिका लौटी तो पिताजी के बेहद अंतरंग मित्र और अजमेर के सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित डॉ. अंबालाल जी बैठे थे। उन्होंने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने कहा कि ‘मैं तो चौपड़ बाज़ार में तुम्हारा भाषण सुनते ही भंडारी जी को बधाई देने चला आया।’ इस प्रकार उनके मुख से प्रशंसा सुनकर लेखिका के पिताजी का क्रोध गर्व भाव में बदल गया।
13. 15 अगस्त, 1947 के महत्व के बारे में बताइए।
ज. 15 अगस्त, 1947 के दिन ही भारत को आज़ादी मिली थी। इस दिन का इंतज़ार भारतवासियों को वर्षों से था। इसके लिए लाखों भारतवासियों ने अपने प्राण न्यौछावर किये थे। इसी कारण लेखिका ने इसे भारत के लिए शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि, कहा।
14.समाज – सुधार कार्यों में स्वयंसेवी संस्थाओं की क्या भूमिका है?
ज. समाज सुधार कार्यों में स्वयंसेवी संस्था महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये अपने-अपने स्तर पर समाज सुधार का कार्य करती हैं। ये निरक्षर लोगों को पढ़ाती हैं। अनाथों के पालन-पोषण की व्यवस्था करती है। प्राकृतिक आपदाओं में लोगों की सहायता करती हैं। शिक्षा के प्रसार में योगदान देती हैं। अस्पताल आदि खोलकर मुफ्त चिकित्सा की सुविधाएँ प्रदान करती हैं। इस प्रकार ये संस्थाएँ सरकार के समाज सुधारक कार्यों को सफल बनाने में सहायता देती हैं।
15.एक कहानी यह भी’ पाठ की लेखिका के बारे में बताइए।
ज. ‘एक कहानी यह भी’ पाठ की लेखिका मन्नू भंडारी जी हैं। वे हिन्दी साहित्य जगत् की सुप्रसिद्ध लेखिका ही उनका जन्म 2 अप्रैल, 1931 को भानपुरा, जिला मंदसौर मध्य प्रदेश में हुआ था बाद में इनका परिवार अजमेर राजस्थान आकर रहने लगा। मन्नू भंडारी की इंटरमीडिएट तक की शिक्षा अजमेर में हुई। स्नातक की परीक्षा बनारस विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण करने के बाद कुछ समय तक कोलकत्ता में अध्यापन कार्य किया। मन्नू भंडारी ने नई कहानी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई है। उनकी रचनाओं में सामाजिक जीवन का यथार्थ चिंतन है। उन्होंने स्त्री-मन से जुड़ी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति, पारिवारिक जीवन तथा विभिन्न वर्गों के जीवन की विसंगतियों को आत्मीय अभिव्यक्ति प्रदान की है। एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, आँखों देखा झूठ, यही सच है, त्रिशंकु आदि उनके प्रमुख कहानी-संग्रह है । उनके प्रमुख उपन्यास आपका बंटी, महाभोज आदि हैं। उन्होंने फिल्मों तथा धारावाहिकों के लिए पटकथाएँ भी लिखी हैं, जिनमें प्रसिद्ध है- रजनी, स्वामी, निर्मला, दर्पण आदि।
16.बस, अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू – थू करके चले जाएँ। बंद करो अब इस मन्नू का घर से बाहर निकलना।
ज. एक बार आजाद हिंद फ़ौज के मुकदमे के सिलसिले में कॉलेजों, स्कूलों, दुकानों के लिए हड़ताल का आह्वान था। लेखिका ने उस आंदोलन में चौराहे पर भाषण दिया। इसी बीच पिताजी के एक दकियानूस मित्र ने उन्हें मन्नू के बारे में भड़काते हुए कहा कि मन्नू की मत मारी गई है। हड़ताले करवाकर हुड़दंग मचा रही है। इस बात पर पिताजी सारे दिन क्रोधित होते रहे। लेखिका जब घर पहुँची तो डॉ. अंबालाल जी बैठे थे, उन्होंने लेखिका के भाषण की प्रशंसा की। इससे पिताजी का क्रोध गर्व में बदल गया।
17.लेखिका के संघर्षमय जीवन से हमें क्या संदेश मिलता है?
ज. लेखिका के संघर्षमय जीवन से हमें संदेश मिलता है कि विद्यार्थियों को भी सामाजिक कार्यों में भाग लेना चाहिए। उन्हें अपनी रुचि साहित्य की ओर बढ़ानी चाहिए। भाषण, वाद-विवाद आदि कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए। इससे हमारे व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है। समाज में लड़के-लड़कियों को समान अधिकार हैं । अतः लड़कियों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। हमारे जीवन पर पड़ोस कल्चर का अमिट प्रभाव पड़ता है। अतः हमें अपने पड़ोस कल्चर से सजग रहना चाहिए। वहाँ की अच्छाइयों को ग्रहण करना चाहिए। इस पाठ का संदेश है कि नारी की भूमिका प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण है। नारी को विकास का भरपूर मौका मिलना चाहिए। तभी समाज का सर्वांगीण विकास हो सकता है।
व्याकरण (‘एक कहानी यह भी)
व्याकरण (‘एक कहानी यह भी)
व्याकरण
1. संधि विच्छेद
भग्नावशेष = भग्न + अवशेष. (स्वर दीर्घ संधि)
किशोरावस्था = किशोर + अवस्था. (स्वर दीर्घ संधि)
विद्यार्थी = विद्या + अर्थी. (स्वर दीर्घ संधि)
महत्वाकांक्षा = महत्व + आकांक्षा. (स्वर दीर्घ संधि)
युवावस्था = युवा + अवस्था. (स्वर दीर्घ संधि)
अंतर्विरोध = अंतः + विरोध. (विसर्ग संधि)
सिद्धांत = सिद्ध + अंत. (स्वर दीर्घ संधि)
2.समास – विग्रह
यथासंभव = जहाँ तक संभव हो सके. (अव्ययीभाव समास)
शब्दकोश = शब्द का कोश. (तत्पुरुष समास)
माता – पिता = माता और पिता. (द्वंद्व समास)
त्रिभुज = तीन भुजाओं वाला. (द्विगु समास)
यश कामना. = यश की कामना. (तत्पुरुष समास)
पीतांबर = जो पीले वस्त्र धारण करता हो /कृष्ण. (बहुव्रीहि समास)
देशभक्त.= देश का भक्त. (तत्पुरुष समास)
3. उपसर्ग
विवश = वि
बेपढ़ी = बे
अवगुण.= अव
अंतर्विरोध = अंत
साकार = स
स्वभाव = स्व
अनपढ़ = अन
अनुमान = अनु
खुशहाल = खुश
असहाय = अ
अनुशासन = अनु
4. प्रत्यय
आर्थिक = इक
लेखिका = इका
सहिष्णुता = ता
प्राध्यापिका = इका
लेखनीय = ईय
प्रकाशित = इत
आरंभिक = इक नैतिक = इक
सामाजिक = इक
भारतीय = ईय
राजनैतिक = इक
5. रेखांकित शब्द व्याकरण की दृष्टि से क्या हैं? पहचानिए।
सन् 1947 के मई महीने में शीला अग्रवाल को कॉलेज वालों ने नोटिस थमा दिया – लड़कियों को भड़काने और कॉलेज का अनुशासन बिगाड़ने के आरोप में। इस बात को लेकर हुड़दंग न मचे, इसलिए जुलाई में थर्ड इयर की क्लासेज़ बंद करके हम दो – तीन छात्राओं का प्रवेश निषिद्ध कर दिया।
ज.में = (अधिकरण कारक)को = (कर्म कारक)ने = (कर्ता कारक)और = (समुच्चय बोधक)का = (संबंध कारक)में = (अधिकरण कारक)इसलिए = (समुच्चय बोधक)
दो-तीन = (संख्यावाचक विशेषण)
6. इन शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए।
1. बच्चा। = बचपन
2. बूढ़ा। = बुढ़ापा
3. सुंदर। =सुंदरता
4. पढ़ाना। =पढ़ाई
5. लाल। =लालिमा
6. मनुष्य। =मनुष्यता
7. वाच्य बदलिए।
1. लेखिका स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेती है।
ज. लेखिका द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया जाता है।
2. मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ।
ज. मेरे से पीछे मुड़कर देखा जाता है।
8. भविष्यत् काल में बदलिए।
1. उन्होंने बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया ।
ज. वे बड़ी गर्मजोशी से स्वागत करेंगी।
2. वे आगे की पढ़ाई करने विदेश गये।
जा. वे आगे की पढ़ाई करने विदेश जायेंगे।
3. मुझे उनका गौरवगान करना है।
जो. मैं उनका गौरवगान करूँगी।
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