6. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
- तुलसीदास
कवि परिचय :
तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर नामक गाँव में सन् 1532 में हुआ था। रामभक्ति परंपरा में तुलसी अतुलनीय हैं। रामचरितमानस' काव्य कवि की अनन्य राम भक्ति और उनके सृजनात्मक कौशल का मनोरम उदाहरण है। रामचरितमानस के अलावा कव्वाली, गीतावली, दोहावली, विनय पत्रिका, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, हनुमान बाहुक आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। सन् 1623 में काशी में उनका देहावसान हुआ।
शब्दार्थ :
नाथ = स्वामी
संभुधनु = शिव का धनुष
भंजनिहारा = तोड़ने वाला
आयेसु = आज्ञा
मोही = मुझे
रिसाइ = क्रोधकर
कोही = क्रोधी
सेवकाई = सेवा
अरिकरनी = शत्रु-कर्म
करि = करके
जेहि = जिसने
तोरा = तोड़ा
सम = समान
रिपु = शत्रु
मोरा = मेरा
बिलगाउ = अलग
बिहाइ = छोड़कर
जैहहिं = जाएँगे
अवमाने = अपमान करते हुए
लरिकाई = बचपन
असि = ऐसी
रिस = गुस्सा
गुसाईं = स्वामी
येहि = इस
ममता = स्नेह
केहि = किस
हेतू = कारण
भृगुकुलकेतू = भृगुवंश की पताका रूप परशुराम
नृपबालक = राज-पुत्र
कालबस = मृत्यु के वश होकर
सँभार = सँभलकर
त्रिपुरारिधनु = शिव धनुष
बिदित = ज्ञात है
सकल = संपूर्ण
हसि = हँसकर
छति = क्षत्रिय
जून = जीर्ण, पुराना
तोरें = तोड़ने से
छुअत = छूते ही
दोसू = दोष
बिनु = बिना
काज = कार्य
करिअ = कर रहे हो
कत = क्यों
रोसू = गुस्सा
चित्र = देखकर
ओरा = ओर, तरफ
सठ = दुष्ट
सुभाउ = स्वभाव
मोरा = मेरा
बधौं = बध कर रहा है
तोही = तेरा
जड़ = मूर्ख
जानहि = जानता है
मोही = मुझे
कोही = क्रोधी
द्रोही = शत्रुता करने वाला
भुजबल = भुजाओं के बल पर
बिपुल = बहुत
महिदेवन्ह = ब्राह्मणों के लिए
भुज = भुजा
छेदनिहारा = काटने वाला
बिलोकु = देखकर
महीपकुमारा = राजकुमार
सोचबस = सोच के कारण
महीप किशोर = राज कुमार
अर्थग्रहण वाले प्रश्न
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा । ।
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।।
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
2.रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न सँभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार॥
लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना ॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा ॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रिय कुल द्रोही।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा II
लघु प्रश्न (चार - पाँच पंक्तियों में उत्तर लिखिए।)
1.तुलसीदास के बारे में आप क्या जानते हैं?
ज. तुलसीदास राम भक्त कवि हैं। वे रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि है। तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा ज़िले में हुआ। उनके गाँव का नाम राजापुर था। उनका जन्म सन् 1532 तथा मृत्यु सन् 1632 में हुई। 'रामचरितमानस' उनकी प्रमुख रचना है। रामचरितमानस के अलावा कवितावली, गीतावली, दोहावली, विनय पत्रिका, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, हनुमान बाहुक आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। उनके काव्य में मूल्य नीतियाँ हैं।
2.आपको 'राम, लक्ष्मण और परशुराम में किसका चरित्र सबसे अच्छा लगा और क्यों ?
ज. मुझे राम का पात्र सबसे अधिक अच्छा लगा। क्योंकि राम बड़ों का आदर करते हैं। वे निडर और साहसी हैं। उनमें धीरज गुण हैं। वे विनम्र तथा मृदुभाषी है । वे विनम्रता से परशुराम जी से कहते हैं कि शिवधनुष तोड़नेवाला आपका कोई दास ही होगा। इसीलिए राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। उनके गुण को हमें जीवन में भी अपनाना चाहिए।
3. क्रोध से हमें क्यों बचना चाहिए?
ज. क्रोध में बने काम भी बिगड़ जाते हैं। क्रोध की जितनी निंदा की जाए उतनी कम है। यह मनुष्य की कमज़ोरी है। क्रोध विध्वंस का कारण बन सकता है। क्रोध में मनुष्य अंधा बन जाता है। उसे अच्छे - बुरे का आभास नहीं रह जाता है। वह क्षण भर में क्रोध के कारण पशु प्रतीत होता है। यह द्वेष के कारण पैदा होता है। क्रोध पतन है। वह मनुष्य को विनाश की ओर ले जाता है। अतः हमें क्रोध करने से बचना चाहिए।
दीर्घ प्रश्न (आठ - दस पंक्तियों में उत्तर लिखिए।)
4. 'राम- लक्ष्मण - परशुराम संवाद' काव्यांश का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
ज. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' नामक पाठ तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस' से संकलित है। इस अंश में सीता स्वयंवर के अवसर पर धनुष-भंग होने के कारण क्रोधित परशुराम और राम-लक्ष्मण के बीच हुए संवाद का वर्णन है। स्वयंवर-स्थल पर शिवजी का धनुष टूटने का समाचार जब परशुराम को मिलता है तो वे क्रोध से भर उठे है वे स्वयंवर स्थल पर पहुंचकर धनुष-भंग करने वाले को ललकारने लगते हैं। परशुराम का क्रोध शांत करने के उद्देश्य से राम उनसे विनम्रतापूर्वक कहते है कि शिवजी का धनुष तोड़ने वाला आपका कोई सेवा ही होगा। परशुराम कहते कि सेवक वह होता है जो सेवा-कार्य करे। शिव-धनुष तोड़ने वाले ने तो दुश्मन का कार्य किया है। जिसने भी इस धनुष को तोड़ा है. वह अलग हो जाए अन्यथा सभी राजा मारे जाएँगे। परशुराम का यह बड़बोलापन सुन लक्ष्मण व्यंग्यपूर्वक कहते हैं कि बचपन में मैं ने बहुत-से धनुष तोड़े। तब तो आपने ऐसा क्रोध नहीं किया। यह धनुष तो बहुत ही पुराना तथा जीर्ण था, जो छूते ही टूट गया। इसमें श्रीराम का कोई-दोष नहीं है। यह सुन परशुराम का क्रोध और भी बढ़ जाता है। वे बोलते है कि तुझे बालक समझ मैं तेरा क्ध नहीं कर रहा हूँ। तू! मुझे मूर्ख मुनि समझ रहा है। मैं धरती से क्षत्रियों का नाश करने वाला बाल ब्रह्मचारी हूँ। मेरा यह फरसा बड़ा ही कठोर है। इससे मैने क्षत्रियों का नाश किया तथा सहस्रबाहु की भुजाओं को काट डाला। अब तू! इससे डर। यह सुन लक्ष्मण ने परशुराम को अपमानित करते हुए कहा - आप मुझे कमजोर समझने की भूल न करें। आपको ब्राह्मण समझकर मैं हाथ नहीं उठा पा रहा हूँ। इस प्रकार राम-लक्ष्मण-परशुराम का संवाद चलता रहता है। इस संदर्भ में राम, लक्ष्मण तथा परशुराम के संवादों में तीन अलग-अलग व्यक्तित्व के पक्षों को दर्शाया गया है। यहाँ राम की विनम्रता के गुण को भी उजागर किया गया है।
5.'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' पाठ के आधार पर राम, लक्ष्मण और परशुराम के रवभाव की तुलना कीजिए।
ज. राम निडर, साहसी, धैर्यवान, विनम्र तथा मृदुभाषी हैं। वे बड़ों की आदर करते हैं। वे बड़ी विनम्रता के साथ परशुराम जी से कहते हैं कि हे नाथ, यह शिवधनुष तोड़नेवाला आपका कोई दास ही होगा। लक्ष्मण क्रोधी व मज़ाकिया स्वभाव के हैं। वे मुनि पर व्यंग्य करते हुए उनका मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि हे मुनि, मेरी समझ से सभी धनुष समान हैं। बचपन में हमने बहुत सारे धनुष खेल-खेल में तोड़े, लेकिन कभी भी किसी ने क्रोध प्रकट नहीं किया। आपने भी क्रोध नहीं किया। आज इस धनुष पर आपकी ऐसी कौनसी ममता है जिस कारण आप आगबबूला हो रहे हैं। परशुराम जी अत्यंत क्रोधी स्वभाव के हैं। वे रूढ़ियों से बँधे हैं। उन्हें अपने क्रोध पर अभिमान है। वे स्वयं को क्षत्रियकुलद्रोही मानते हैं। इससे उनके जाति प्रथा में भी विश्वास का पता चलता है। शिव धनुष में उनकी आस्था मूर्तिपूजा के नाम पर फैले अंधविश्वास को प्रकट करती है।
संदर्भ सहित व्याख्या :
पद्यांश -1
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
संदर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'उमंग-2' के 'राम-लक्ष्मण-परशुराम-संवाद' नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। यह पाठ उनकी सुप्रसिद्ध रचना 'रामचरितमानस का अंश है। प्रस्तुत पंक्तियों में धनुष भंग करने के बाद क्रोधित परशुराम को राम अपनी विनम्र वाणी द्वारा शांत कर रहे हैं।
व्याख्या :
सीता स्वयंवर में धनुष भंग करने के बाद परशुराम अत्यंत क्रोधित होकर जनक की सभा में आते हैं। वे धनुष तोड़ने वाले के बारे में पूछते हैं। उनका क्रोध शांत करने के लिए राम बड़ी विनम्रता से उनसे बातचीत करते है। राम कहते हैं कि हे नाथ, इस धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। कृपा कर आप अपने यहाँ आने का कारण बताइए। यह बात सुनकर परशुराम और क्रोधित होते हुए बोले। इन पंक्तियों में राम के विनम्र स्वभाव का परिचय है, जिसके कारण उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम कहा जाता है।
गद्यांश-2
बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाई।। येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
संदर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'उमंग-2' के 'राम-लक्ष्मण-परशुराम- संवाद' नामक पाठ से उद्धृत है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। यह पाठ उनकी सुप्रसिद्ध रचना 'रामचरितमानस' का अंश है। प्रस्तुत पंक्तियों में लक्ष्मण-परशुराम का संवाद है। सीता स्वयंवर में राम द्वारा धनुष भंग करने के बाद परशुराम क्रोधित हो जाते हैं। लक्ष्मण उनके क्रोध पर व्यंग्य करते हैं। इस चौपाई में उस व्यंग्य वचन का चित्रण है।
व्याख्या :
प्रस्तुत चौपाई में लक्ष्मण परशुराम पर व्यंग्य करते हुए कहते है- हे मुनि, हमने बचपन में खेल- खेल में ही कितने ही धनुष तोड़ दिया। आपने तो कभी भी हम पर इस प्रकार क्रोध प्रकट नहीं किया। आखिर इस धनुष से आपका ऐसा कौन सा प्रेम है कि इसके कारण आप इतना अधिक क्रोध प्रकट कर रहे हैं। लक्ष्मण के इस व्यंग्य वचन सुनकर परशुराम का क्रोध और बढ़ गया।
पद्यांश -3
सेवकु सो जो करै सेवकाई । अरिकरनी करि करिअ लराई । सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा ।।
संदर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'उमंग-2' के 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' नामक पाठ से लिया गया है इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। यह पाठ उनकी सुप्रसिद्ध रचना रामचरितमानस का अंश है प्रस्तुत पंक्तियों में सीता स्वयंवर में राम द्वारा धनुष भंग करने के बाद परशुराम का क्रोध चित्रित है।
व्याख्या :
प्रस्तुत चौपाई में परशुराम की क्रोधपूर्ण वाणी है जब राम कहते हैं कि इस धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका सेवक ही होगा तो परशुराम का क्रोध और बढ़ जाता है। वे क्रोधित होकर कहते हैं सेवक वह है जो सेवा का काम करे। वह शत्रुता का काम नहीं करता। हे राम,तुम सुनो। जिसने यह शिव धनुष तोड़ा है वह सहस्त्रबाहु के समान मेरा शत्रु है। इन पंक्तियों में परशुराम के क्रोधित स्वभाव का चित्रण मिलता है।
पद्यांश -4
ने नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार ।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार ।
संदर्भ :
प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'उमंग-2' के 'राम-लक्ष्मण-परशुराम-संवाद' नामक पाठ का अंश है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। यह पाठ उनकी रचना 'रामचरितमानम से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में परशुराम द्वारा लक्ष्मण को चेतावनी दी जा रही है।
व्याख्या :
सीता स्वयंवर में राम द्वारा धनुष भंग करने के बाद परशुराम क्रोधित हो जाते हैं । लक्ष्मण उनके क्रोध पर व्यंग्य करते हैं। इसके उत्तर में परशुराम उन पर क्रोध प्रकट करते चेतावनी देते हैं कि हे बालक तुम्हारा समय खराब चल रहा है। तुम काल के वश में सँभल कर बातचीत नहीं कर रहे हो। यह धनुष सामान्य धनुष नहीं है। यह महान शिव का धनुष है। यह संपूर्ण संसार में विख्यात है।
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