4. तुम कब जाओगे, अतिथि!
कवि परिचय
•शरद जोशी का जन्म 21 मई सन् 1931 को हुआ। • जन्म स्थान - मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में - उनकी मृत्यु 5 सितंबर सन् 1991 को मुंबई में हुई। . इन्होंने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया। वे हिंदी के प्रतिष्ठित व्यंग्यकार हैं। प्रमुख व्यंग्य रचनाएँ- 'परिक्रमा', 'किसी बहाने', 'जीप पर सवार इल्लियाँ, 'तिलस्म', 'रहा किनारे बैठे', 'दूसरी सतह', 'प्रतिदिन। दो व्यंग्य नाटक हैं- 'अंधों का हाथी' और 'एक था गधा। उनकी भाषा अत्यंत सरल, सहज व चोटीली है। मुहावरों और हास- परिहास के कारण इनकी रचनाएँ अधिक रोचक बन पड़ी हैं। इन्हें सन् 1990 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।
प्रश्न-अभ्यास
1. प्रसिद्ध उक्ति है - अतिथि देवो भवः। इसके पक्ष - विपक्ष में चर्चा कीजिए।
ज. पक्ष - हमें अपने सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिए।
हमारे सम्मान देने पर ही कोई हमें सम्मान देता है।
किसी की सेवा करने से कोई कंगाल नहीं होता, अपने सामर्थ्य के अनुसार भी सत्कार किया जा सकता है।
अच्छा आतिथ्य अच्छा भोजन नहीं बल्कि प्रेमपूर्ण व्यवहार है।
विपक्ष -
आज की महँगाई के युग में अतिथि का सत्कार हमारा बजट बिगाड़ सकता है।
* अतिथि के आगमन से हमारे सारे काम ठहर जाते हैं।
- आज के नीतिविहीन समाज में अतिथि का मनोभाव समझना भी कठिन है।
* अतिथि के आने पर हमें उसके लिए अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़ती है।
2. आज की बदली हुई परिस्थिति में अतिथि के आगमन पर हमारा क्या उत्तरदायित्व है?
ज. आज की बदली हुई परिस्थिति में अतिथि के आगमन पर हमारा उत्तरदायित्व है कि
: हम अतिथि का सहृदयता से स्वागत करें।
अतिथि की पहचान सही ढंग से कर लें।
: अनजान आदमी को आतिथ्य जाँच-पड़ताल के बाद ही दें।
अतिथि के सेवा-सत्कार में आडंबर न करें।
- उसके आगमन के बाद भी अपना स्वाभाविक रहन-सहन, खान-पान बनाए रखें।
3.मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
व्याख्या - लेखक के मन में अतिथि के स्वागत-सत्कार का उत्साह समाप्त हो रही है। दिन-प्रतिदिन सत्कार के तरीके में कमी आती जा रही है। अब यह अंतिम अवस्था है। पहले दिन अतिथि को अपने स्तर से अच्छा भोजन करवाया जाता है। अब वे उसके लिए खिंचड़ी बनाने लगे हैं। लेखक मन ही मन कहता है कि अब और तुम्हारा आतिथ्य मुझसे नहीं सहा जाएगा। कृपया सुबह होते ही यहाँ से चले जाओ। यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो हमारे संबंध बिगड़ सकते हैं।
महात्मा जी के आगमन पर चिंता क्यों हुई?
ज.महात्मा जी को वह गेहूँ के आटे की रोटी खिलाना चाहता था जो उसके पास जी के आगमन पर चिंता हुई।
4.यदि आप अतिथि बनकर कहीं जाते हैं तो आपकी क्या अपेक्षाएँ होती हैं?
ज. अतिथि के रूप में मेरी अपेक्षा होती है कि लोग मुझसे प्रेम से मिलें। मैं उनका हाल-चाल जान सकूँ। यदि मुझसे उनकी कोई सहायता हो सके तो कर सकूँ। जब तक उनके घर में रहूँ उनके काम में हाथ बटा सकूँ। मेरे कारण उनको कोई कठिनाई न हो।
5. घर आए अतिथि को आप अपनी कौन - कौन सी वस्तु प्रसन्नता पूर्वक देना चाहेंगे?
ज. अतिथि को मैं दैनिक उपयोग की सभी वस्तुओं की सुविधा दूंगा जिससे उसे किसी प्रकार की कठिनाई न हो। मै उसके खान - पान का ध्यान रखूंगा। अपने खिलौने भी उसे खेलने के लिए दूँगा। अपनी किताबें उन्हें पढ़ने के लिए देंगे।
6. गाँव और शहरों के तथ्य सत्कार में आपको क्या अंतर दिखाई देता है?
ज. गाँव में अतिथि सत्कार शहर की तुलना में अधिक दिखाई पड़ता है। वहाँ के लोग आडंबर नहीं करते। किसी एक का मेहमान सारे गाँव का मेहमान माना जाता है। गाँव के सभी लोग उसकी सुविधाओं का ध्यान रखते हैं। उसके मनोरंजन का ध्यान रखते हैं। शहरों में ऐसा नहीं होता। लोगों में आपसी घनिष्ठता भी कम होती है। शहरी लोग अतिथि के आगमन को अपने लिए कठिनाई मानते हैं।
7. आपकी दृष्टि में अच्छे अतिथि के क्या लक्षण हैं?
जी. अच्छा अतिथि वह है जो समय बताकर किसी के घर जाए। अधिक समय तक मेहमान के घर न रुके। सबसे प्रेम से मिलें। कोई मांग न करे। जो मिले रुचि के साथ खाए। सबका हाल-चाल पूछे। किसी को कुछ परेशानी हो तो सहायता करे। जब तक अतिथि रहे उनके कामों में हाथ बटाए। उनके दैनिक क्रियाकलाप में बाधक न बने। हमेशा ध्यान रखे कि उसके कारण आतिथ्य देने वाले को कठिनाई न होने पाए।
8. "संबंधों के संक्रमण के दौर से गुज़रना" इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं ? विस्तार से लिखिए
ज. "संबंधों के संक्रमण के दौर से गुज़रना' से अभिप्राय है - संबंध खराब होने की ओर अग्रसर होना! लेखक के घर अतिथि का आगमन होता है। लेखक उसका स्वागत करता है। किंतु जब अतिथि चार दिनों तक नहीं लौटता तो उनके संबंध खराब होने लगते हैं। जैसे-जैसे आतिथ्य की सीमा बढ़ती है वैसे-वैसे उनके संबंध खराब होते चले जाते हैं। अब लेखक उससे चर्चाएँ बंद कर देता है। अब उनके बीच हँसी के ठहाके नहीं गूंजते। शब्दों का लेन-देन मिट जाता है। अतः संबंध तभी तक अच्छे रहते हैं जब तक हम एक-दूसरे पर बोझ न बनें। यदि हम स्वयं को किसी पर थोपने का प्रयास करते हैं तो संबंधों के संक्रमण का दौर आरंभ हो जाता है।
9. लेखक ने अतिथि को क्या - क्या सुविधाएँ प्रदान की?
ज. लेखक ने अतिथि को खाने-पीने की अच्छी सुविधा दी। उसे घर पर खिलाया। होटल में खिलाया। सिनेमा दिखाया। उसके मनोरंजन की व्यवस्था की। उसके पढ़ने के लिए किताबें और पत्रिकाएँ दीं। स्वयं भी उसकी बोरयत दूर करने के लिए उससे चर्चाएँ करता रहा। उसके कपड़े लॉण्ड्री में धुलवाए। उसके रहने तथा सोने की समुचित व्यवस्था की। उसके लिए अच्छा विस्तार लगवाया। समय पर उसके विरतर का चादर बदला। उसकी आवश्यकता की सभी वस्तुएँ उपलब्ध करवाई।
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