2. वह आवाज
कवि परिचय
जीवन परिचय
• जन्म 21 जून, सन् 1912 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गाँव में I
.मृत्यु 11 अप्रैल, सन् 2009 में हुई। इन्होंने नाटक मंडली में भी कार्य किया। ये आकाशवाणी के नाट्य निर्देशक भी रहे। इनके साहित्य के लिए इन्हें पद्म भूषण .
विष्णु प्रभाकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्यिक परिचय :
विष्णु प्रभाकर हिंदी के प्रतिष्ठित नाटककार व कहानीकार हैं। उपन्यास अर्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
इन्हें साहित्य के क्षेत्र में अधिक ख्याति इनकी जीवनी आवारा मसीहा के कारण मिली। जीवनी, लघुकथा साहित्य भी लिखे।
पहली लघुकथा सार्थकता मुंशी प्रेमचंद की हंस पत्रिका में जनवरी 1939 में छपी लघुकथा संग्रह - 'जीवन पराग', 'आपकी कृपा है' और 'कौन जीता कौन हारा' इनकी कहानियों में मनुष्यों के बीच बन रही दूरी पर सहज व्यंग्य है।
इनकी कुछ रचनाएँ सांप्रदायिक भेदभाव को भुलाने की प्रेरणा देती हैं। ये रचनाएँ अपनी सजगता, सरलता व सहजता के लिए प्रसिद्ध है।
1. मंटू की माँ ने उसके चाचा के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की थीं?
ज. मंटू की माँ ने उसके चाचा के खाने के अनेक तैयारियाँ की थीं। मेज़ पर खाने की अनेक चीज़ें सजाई थी जिसमें सेब, चीकू, संतरे, रसगुल्ले, दालबीजी इत्यादि थे। माँ उनके लिए समोसे भी बना रही थीं। बाज़ार से बरफी मिठाई भी खरीद कर लाई। बरफी, मिठाई अशोक चाचा को बहुत पसंद थी।
2. स्कूल छूटने के बाद मंटू जब घर आया तो उसकी माँ दरवाज़े पर खड़ी दिखाई नहीं दी। उस समय उसके मन में क्या-क्या विचार आये होंगे?
ज. माँ के न मिलने पर मंटू के मन में अनेक विचार आये होंगे, जैसे -
- क्या माँ की तबियत खराब है और वे अस्पताल गई हैं?
-क्या घर के सब लोग मुझे छोड़कर कहीं घूमने चले गये हैं?
- क्या माँ नानी के गाँव घूमने चली गई हैं?
-क्या माँ बाज़ार से मेरे लिए कुछ खरीदने गई हैं? क्या किसी रिश्तेदार की तबीयत खराब है और माँ उसे देखने गई हैं?
-क्या माँ मेरे लिए किचेन में समोसे बना रही हैं? - इत्यादि - इत्यादि
3. मंटू अपने आपको बिल्कुल हल्का क्यों महसूस करने लगा?
ज. मंटू ने अपनी गलती स्वीकार कर ली। उसके मन पर जो बोझ था वह हट गया। गलती स्वीकार करने से पहले उसके मन में बार-बार प्रश्न उठ रहे थे। बार-बार उसका मन उसे धिक्कार रहा था कि तुमने गलत किया है। गलती स्वीकार करने के बाद यह सब समाप्त हो गया। ऐसा करने पर उसकी प्रशंसा भी हुई। इसलिए वह स्वयं को बिल्कुल हल्का महसूस करने लगा।
II.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर आठ दस वाक्यों में लिखिए।
1. अपराध स्वीकार कर लेने के बाद मम्मी और अध्यापक ने मंटू के संबंध में क्या सोचा होगा?
ज. अपराध स्वीकार करने के बाद मम्मी ने मंटू के बारे में बहुत अच्छा सोचा होगा। वे बड़ी प्रसन्न हुई होंगी कि उसने स्वयं अपनी गलती स्वीकार कर ली। उन्होंने सोचा होगा कि उनका बेटा अत्यंत भोला है। वह मन का सच्चा है। उसे तब तक कोई बुराई छू नहीं सकती जब तक वह अपने मन की आवाज़ सुनता है। यदि वह इसी प्रकार अपनी गलतियों में स्वयं सुधार करता रहा तो एक दिन वह महान इंसान बनेगा। अध्यापक जी को मंटू के अपराध स्वीकार करने पर प्रसन्नता हुई होगी। उन्होंने सोचा होगा कि यह बालक बहुत अच्छा है। अपनी गलती स्वयं स्वीकार कर लेता है। यदि वह चाहता तो इसे छिपा भी सकता था। यदि सारे बच्चे ऐसे ही हो जायें तो समाज से बुराई मिट जायेगी। हमें इस बच्चे को पुरस्कार देना चाहिए। दूसरों को भी यह घटना बतानी चाहिए जिससे वे इससे कुछ सीख सकें।
2. मंटू का चरित्र चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
ज. मंटू पाठशाला में पढ़ता है। वह बहुत भोला है। एक दिन वह चोरी से अपने घर में एक रसगुल्ला और चीकू खा लेता है। इस गलती के कारण उसका मन बेचैन हो जाता है। उसका मन बार-बार उसे इस गलती के लिए धिक्कारता है। अंतः वह अपनी गलती स्वीकार कर लेता है। इससे पता चलता है कि मंटू का चरित्र अत्यंत स्वच्छ है। थोड़ी सी भी गलती होने पर वह उसे स्वीकार किये बिना सहज से नहीं रह पाता। यही उसके चरित्र की विशेषता है। कहानीकार ने मंटू के चरित्र को बड़ी ही सहजता से उभारा है। एक घटना में अध्यापक के समक्ष मंटू अपनी गलती स्वीकार करता है। वह चाहता तो उस गलती को छिपा भी सकता था। किंतु उसने ऐसा नहीं किया। अध्यापक इस घटना से अत्यंत प्रसन्न होते है। वे मंटू की प्रशंसा करते हैं। इस कहानी में मंटू के चरित्र से सीख मिलती है वह अनमोल है। यदि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही अपने में सुधार कर ले तो कहीं अपराध ही न हो। न थाने हों, न पुलिस। हमें मंटू के चरित्र से यह सीख लेनी चाहिए कि आत्मविश्लेषण, आत्मसुधार का सबसे बड़ा आयुध है।
अन्य परीक्षा उपयोगी प्रश्न
1. वह आवाज़' कहानी का संदेश क्या है?
ज. इस कहानी का संदेश यह है कि यदि हमसे कोई गलती हो जाये तो तुरंत उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। उसमें सुधार करने का प्रयास करना चाहिए। जो अपनी गलती मानते हैं वे ही स्वयं में सुधार कर सकते है। आत्मसुधार के लिए आत्मविश्लेषण आवश्यक है। अच्छा, सफल व महान इंसान बनने के लिए स्वयं में निरंतर सुधार करने की आवश्यकता होती है।
2. मंटू के घर में मेज़ पर खाने के व्यंजन क्यों सजे थे?
ज. मंटू के घर उसके अशोक चाचा खाने पर आने वाले थे इसलिए खाने की मेज़ सजाई गई थी। उस पर तरह-तरह के व्यंजन रखे गये थे। माँ उनके लिए बाज़ार से बरफी लाने गई थीं। अशोक चाचा को यह बरफी बहुत पसंद थी।
3. मंटू को खुश करने के लिए किसने क्या क्या किया ?
जय. माता को खुश करने के लिए मम्मी ने अनेक कहानियाँ सुनाई। अशोक चाचा ने उसे कई गाने सुनाए। मम्मी ने उसे खुश करने के लिए दुलार किया। उसके स्कूल का काम भी किया। लेकिन मंटू का मन स्वस्थ नहीं हुआ।
सारांश
तुम कब जाओगे. अतिथि! एक व्यंग्य रचना है इसके व्यंग्यकार शरद जोशी जी हैं । वे हिंदी के एक प्रतिष्ठित व्यंग्यकार हैं। इसमें उन्होंने एक मध्यवर्गीय परिवार में अतिथि के आगमन से होने वाली समस्याओं पर व्यंग्य किया है। आज की महंगाई में अतिथि देवो भवः' जैसे नैतिक मूल्यों का निर्वाह कितना दूभर हो गया है, इसका प्रभावीएवं रोचक चित्रण इस व्यंग्य में हुआ है।
लेखक के घर एक अतिथि आता है। लेखक उसकी आवभगत बड़े ही अच्छे से करते हैं। लेकिन वह मेहमान
जाने का नाम नहीं लेता। चार दिन बीत जाते है। उसके जाने की कोई संभावना दिखाई नहीं देती। तब लेखक उसके आगमन व रहने संबंधी विषयों को याद करते हुए अपने व्यंग्य विचार लिखते हैं वे कहते हैं - "हे अतिथि तुम कब जाओगे? अगर तुम्हें हिसाब लगाना आता है तो यह चौथा दिन है। चाँद पर पहुँचने वाले अंतरिक्ष यात्री भी वहाँ इतने दिन नहीं रुके। तुम मेरी काफ़ी मिट्टी खोद चुके। अब तुम लौट जाओ, अतिथि!" इस प्रकार लेखक अपने द्वारा दिये आतिथ्य का प्रतिदिन याद करता है। उन दिनों के बारे में बताते हुए अतिथि के जाने की कामना करता है। वह कहता है - "उस दिन जब तुम आए थे, अंदर-ही-अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।" इसके बावजूद लेखक अतिथि जल्दी चला जाएगा सोचकर अच्छी मेहमाननवाज़ी करता है। उसे बढ़िया भोजन कराता है। सिनेमा दिखाता है। लेकिन वह इस बात से बहुत दुखी है कि अतिथि जाने का नाम नहीं लेता। वह अपने कपड़े धोबी को देने को कहता है। लेखक को इससे आशंका हो जाती है कि अतिथि अधिक दिन रहना चाहता है। इससे वह अत्यंत दुखी होता है। वह अतिथि से विविध तर्क देकर जाने को कहता है। लेखक के इन्हीं विचारों व तर्को को इस व्यंग्य का विषय बनाया गया है। भाषा अत्यंत रोचक है। हास-परिहास इस लेख की विशेषता मानी जा सकती है। अनेक स्थानों पर यह जीवन के अत्यंत निकट प्रतीत होती है।
very informative thanks
ReplyDelete